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सद्गुरु

Posted: Wed Oct 10, 2012 6:34 pm
by chandresh_kumar
सद्गुरु का अर्थ ऐसा सच जो हमें अन्धकार से प्रकाश की और ले जाए । शिक्षा देने वाले हमें कई मिल जाते है, शिक्षा - सीख है और ज्ञान - सच !

कई लोग गुरु की तुलना शिक्षक से भी करते हैं । गुरु जो कि गोविन्द से भी पहले होता है, शिक्षक उसकी बराबरी नहीं कर सकता है । गुरु क्या है, गुरु के बारे में कहा गया है कि

गुरुबुध्यात्मनो नान्यत् सत्यं सत्यं वरानने |
तल्लभार्थं प्रयत्नस्तु कर्त्तवयशच मनीषिभिः ||

अर्थात गुरु हमारे स्व-चेतन से भिन्न नहीं है । बुद्धिमान पुरुषों के आत्मज्ञान लेने के लिए गुरु के पास जाना चाहिए । गुरु सर्वोच्च ज्ञान देता है, शिक्षक सिर्फ शिक्षा तक ही सीमित है । शिक्षा और ज्ञान में फर्क है । हम लोग कई बार अज्ञानवश शिक्षा को सब कुछ समझ लेते हैं, शिक्षा शब्द शिक्ष धातु से बना है जिसका अर्थ है 'सीखना।' भौतिक शिक्षा अनुकरण के द्वारा सीखी जाती है जिसका संबंध ज्ञानेन्द्रियों, कर्मेद्रिंयों व मन बुद्धि तक ही सीमित है । लेकिन जो बुद्धि से परे है जो आत्मा से जुड़ा है और जो सच के अनुभव पर आधारित है वो ज्ञान है ।

शिक्षा कई बार अहंकार पैदा कर देती है क्योंकि शिक्षित व्यक्ति को यश मिलता है, लेकिन ज्ञान अहंकार को दूर कर देता है क्योंकि ज्ञान होने के बाद व्यक्ति स्व से जुड़ जाता है ।

हालांकि ज्ञान को पाकर भी कई लोग ज्ञान को समझ नहीं सकते हैं, उन्हें वो तुच्छ लग सकता है, ये भी अहंकार है । इसलिए सद्गुरु की आवश्यकता होती है, जो अहंकार को पूर्ण रूप से ख़त्म करके, ज्ञान को अंतर्मन में उतार देता है और फिर पहले हमारी आत्मा और धीरे धीरे हमारी ज्ञानेन्द्रियों, कर्मेद्रिंयां, मन और बुद्धि ज्ञान को आत्मसात कर लेती है और हम ज्ञान में डूब जाते है । तब ज्ञान का आनंद आना शुरू होता है, हर पल, हर जगह, हर परिस्थिती में । सोते जागते खाते पीते हमें ज्ञान का बोध रहता है और इस अवस्था में आने के बाद हम ज्ञानी कहलाते है । यह अवस्था सद्गुरु के आशीर्वाद के बिना नहीं आ सकती है ।

सिर्फ ज्ञान प्राप्त करने वाला ज्ञानी नहीं हो जाता, ज्ञान के साथ जीने वाला ज्ञानी होता है । ज्ञान के साथ जी लें, ईश्वर हमें यह आशीर्वाद दें । हम सब ज्ञानी बनें, सिर्फ ज्ञान को लेकर बैठें नहीं ज्ञान को अपने में बैठा लें ।