चोर ज्यों ही चोरी करने के लिए घर में घुसे , त्यों ही तुलसीदास ने अपने झोले से शंख निकालकर बजा दिया। सब चोर भागकर आ गए। पूछने पर तुलसीदास बोले - आपने ही तो कहा था कि कोई देखे तो आवाज लगा देना। आवाजकरता तो कोई मेरा गला दबा देता। इसलिए शंख बजा दिया। चोर बोले - परंतु यहां तो कोई नहीं हैं जो हमें देखता? तुलसीदास बोले - जो सर्वव्यापक हैं , सर्वत्र हैं , जो मेरे हृदय में विराजमान हैं , वही आप लोगों के हृदय में भी विराजमान हैं , मुझे लगा कि जब सब जगह श्रीराम हैं तो वे आप लोगों को भी देख रहे हैं , वे आप लोगों को सजा देंगे। कही आप लोगों को सजा न मिल जाए इसलिए मैंने शंख बजा दिया। तुलसीदास के वचन सुनकर चोरों का मनपलट गया और वे सदा के लिए चोरी का धंधा छोड़कर प्रभु के भक्त बन गए।
तुलसी दास जी के लिए जब घट घट में श्री राम रूप में ईश्वर हैं तो उन्हें आभास हो गया कि वो साथ हैं, कुछ भी गलत कैसे करूं। इसी तरह हमें समझना चाहिए कि ईश्वर हर जगह हर समय हमारे साथ है, गलत कैसे करें। जीवन जीने की कला अपने आप ही आ जायेगी ।
