सहनशीलता

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chandresh_kumar
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सहनशीलता

Post by chandresh_kumar »

सहनशीलता - पढ़ने में यह शब्द बहुत सुन्दर दिखता है और ध्यान से पढ़ें तो मन को अच्छा लगेगा, एक शान्ति सी मिलती है । क्षमावान होना सहनशील होने के आख़िरी सीढ़ी है और सहनशील होना क्षमावान बनाने के रास्ते का मील का पत्थर है । अंतर्मन के मित्र काम , क्रोध , ईर्ष्या , लोभ , मोह आदि को शांती - प्रेम - दान - संतोष से मार डालने पर कई अमृतरूपी प्रसाद मिलते हैं, उनमे से एक है - सहनशीलता।

सहनशील - सहन और शील दो शब्दों से मिल कर बना है । सहन का अंगरेजी अर्थ है ENDURANCE अगर noun है तो और अर्थ है TOLERATE अगर verb है तो । लेकिन अगर हम अर्थ को भीतर से समझाने जाएँ तो पाएंगे कि सहन करने का अर्थ (भावार्थ) है कि अगर कोई बुरा कहे - करे तो माफ़ कर देना... अन्याय का प्रतिकार ज़रूर करना चाहिए लेकिन बुराई को माफ़ भी करना चाहिए... यही सहन करना है । शील का अर्थ है सम्पूर्णता, जीवनी शक्ति और मानवता का दैवीय धन । तो सहनशील का अर्थ है हर तरह से मानवीयता पूर्ण क्षमा करना ।

वाणी और व्यवहार व्यक्ति के चिंतन की कसौटी हैं। वाणी वशीकरण मंत्र है। संयमित बोलने वाला अनेक झंझटों से अपने आप को बचाता है जबकि अधिक बोलने वाला अनेक मुसीबतों को निमंत्रण देता है। वह स्वयं अपनी नजरों में भी गिर जाता है। व्यक्ति को हमेशा अच्छे विचारों अथवा चिंतन में रहना चाहिए।

अहंकार का मार्ग छोड़कर सहनशीलता का रास्ता अपनाना चाहिए । कई बार यह पढ़ने में आता है कि छोटी छोटी बातों पर बड़ी लड़ाई या मार काट हो जाती है । अपनी पसंद का टीवी चैनल नहीं चलने पर एक लड़की ने आत्महत्या कर ली । ये सब असहनीय होने की पराकाष्ठा है । कई लोग किसी मित्र का समय खराब चलते ही कन्नी काट लेते हैं और उसे उल्टी पुलटी सलाह देने लगते हैं । यह भी सहनशीलता की कमी से होता है । छोटी सी बात का बतंगड़ बनने में समय नहीं लगता। आजकल तलाक की बढती तादाद की वजह पति-पत्नी का अधिक असहिष्णु और गुस्सैल होना है।

सहनशीलता के बिना मानवीय गुणों का विकास संभव नहीं है । असहनशीलता खून के रिश्तों में भी कडुवाहट घोल देती है । सहनशीलता नहीं होने से ही धर्म के नाम पर मार काट मच जाती है -- जबकी सारे धर्म सहनशीलता का पाठ सीखाते हैं -- असहनशील व्यक्ति दूसरों को भले ही नुकसान न पहुंचाए परंतु खुद को जरूर नुकसान पहुंचाता है, इससे उसका रक्तचाप बढ़ता है और वह असमय काल का ग्रास बन जाता है। जीवन में सहनशीलता का वास होने पर दया, विनय, परोपकार अपने आप ही आ जाते हैं । । जो व्यक्ति परेशानियों में विचलित नहीं होता, सुख से प्रसन्न नहीं होते, जो आसक्ति, भय, क्रोध आदि से मुक्त है, वही स्थिर मुनि एवं सहनशील कहलाते हैं। हमें ऐसी जीवन जीना है जो संकीर्णता, घृणा, लोभ, क्रोध आदि से बचते हुए दिव्य गुणों को प्राप्त करे। व्यक्तित्व के विकास का आधारभूत तत्व सहिष्णुता है. इसके साथ और भी अनेक प्रकार की विशेषताएं आवश्यक हैं. पर वे सब अपनी मूल्यवत्ता को तभी प्रमाणित करती हैं जब व्यक्ति में धृति, सहिष्णुता और संतुलन हो.। यह भी एक परम सत्य है कि जहां स्नेह हो, वहां लक्ष्मी स्वयं दौडी चली आती है। पुण्य योग से अर्जित जीवन में शांति का कारण बनता है।

ईश्वर हमें आशीर्वाद दें कि हम सब सहिष्णु बनें और अपने परिवार का -- समाज का -- राष्ट्र का और मानव जाति का उत्थान करे ।
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