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http://en.wikipedia.org/wiki/Agnihotra
नलिनी माधव Says the following:
वेदों का वरदान अग्निहोत्र
एक सर्वे के अनुसार प्रतिवर्ष 2000 किस्म की वनस्पतियाँ, पशु-पक्षी इस भूमंडल से समाप्त होते जा रहे हैं। वनों की अनियंत्रित कटाई, रासायनिक खाद एवं छिड़काव द्वारा भूमि की उर्वरता से संबंधित आँकड़ों के अनुसार योरप की चालीस प्रतिशत भूमि कृषि योग्य नहीं रही है।आगामी पाँच वर्षों में पृथ्वी का एक तिहाई हिस्सा कृषि के अयोग्य होने का अनुमान है। इन प्रदूषणजनक स्थितियों का सामना करने के लिए वेदों की देन है 'अग्निहोत्र'। अग्निहोत्र, जो कि आज की परिस्थितियों में वैज्ञानिक कसौटियों पर उतरा है। इसके आचरण से न केवल शरीर स्वस्थ एवं वातावरण शुद्ध होता है बल्कि हृदय रोग, दमा, क्षय रोग, मानसिक तनाव आदि घातक रोगों से भी छुटकारा मिलता है।
सृष्टि के सभी जड़ व चेतन पदार्थों का निर्माण पंच महाभूतों, पृथ्वी, पानी, तेज, वायु एवं आकाश से हुआ है। सृष्टि निर्माण के बाद ईश्वर ने संपूर्ण मानव जाति के कल्याण हेतु सत्य धर्म का संदेश दिया। सत्यधर्म का अर्थ है ऐसे अपरिवर्तनीय सिद्धांत जिन्हें किसी भी कसौटीपर परखने पर सत्य सिद्ध होते हैं। सत्यधर्म में किसी जाति, धर्म, देश, प्रदेश आदि की संकीर्ण विचारधारा के लिए कोई स्थान नहीं है।
हमारे वेद विभिन्न ज्ञान के खजानों का अथाह समुद्र हैं एवं इसी समुद्र मंथन से निकला है पंच साधन मार्ग। पंच साधन मार्ग एक जीवन पद्धति है जो वैदिक ज्ञान के अंतर्गत मनोकायिक (साईकोसोमेटिक) प्रणाली पर आधारित है एवं इसके पाँच मूलभूत सिद्धांत है- यज्ञ, दान, तप, कर्म एवं स्वाध्याय। प्रातः-सायं सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय किए जाने वाला यज्ञ ही अग्निहोत्र है। अग्निहोत्र एक सूक्ष्म एवं घरेलू हवन है जो कि वेदों में वर्णित प्राण ऊर्जा (बायोइनर्जी) विज्ञान पर आधारित है।
यही एक सूक्ष्म एवं सुलभ वैदिक विधि है जिससे हम मानव जीवन को जाग्रत कर उसे उसकी छिपी हुई शक्ति का आभास करा सकते हैं।
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दैनिक यज्ञ को अग्निहोत्र कहेते है , अग्निहोत्र करने के चार उद्देश्य है ,
१। वैयक्तिक और सामाजिक वायु मण्डल को शुद्ध करना है ,
२। रोग किटाणुओंको नष्ट करना
३। वैयक्तिक और सामाजिक रोगों को दूर करना
४। वृष्टि की कमी को दूर करना
यह अग्निहोत्र यज्ञ की प्रक्रिया से एक ही समय में वायु की शुद्धि होती है , जल की शुद्धि होती है और जलवायु शुद्धि से अन्न भी शुद्ध होता है ,
इसकी महत्ता इसलिए है की मनुष्योंका निर्वाह पशुओंपर , पशुओंका वृक्ष वनस्पति पर , और वृक्षो का निर्वाह वर्षा पर अवलंबित है । बिना वर्षा , वृक्ष , वनस्पति नहीं , और वृक्षों के अभाव से पशुओंका अभाव और इससे मनुष्योंका अभाव हो जावे इसका अर्थ है की प्राणिमात्र के लिए वर्षा नितांत आवश्यक है । इसीलिए आर्यों ने अग्निहोत्र द्वारा इच्छानुसार पानी बरसाने की विद्या का आविष्कार किया था ।
शतपथ ५/३ में कहा है - “अग्ने वै ध्रुमो जायते धुम्रादभ्रम भ्राद वृष्टि अर्थात अग्नि से धूम , धूम से मेध , और मेध से वर्षा । “
मनु ३/७६ मे कहा है - “अग्नि मे प्रदत आहुतियां सूर्य किरणों मे पहुँचती है और सूर्य की किरणों से वृष्टि होती है , तथा वृष्टि से अन्न और अन्न से प्रजा । “
गीता ३/४ नुसार - “ अन्नाद भवन्ति भूतानि , पर्जन्यात अन्न संभव: । यज्ञात भवति पर्जन्यों , यज्ञ कर्म समुदभव: । “
यज्ञ एक चिकित्सा विज्ञान भी है , यज्ञग्नि द्वारा ज्वर , क्षय , कुष्ठ , गर्भदोष , गर्भधारण , उन्माद इत्यादि की सफल चिकित्सा का वर्णन वेदो से पाया जाता है । यज्ञ में भिन्न भिन्न ओषधियां जलाकर रोंगों की निवृत्ति हो सकती है । अथर्व वेदमें यज्ञीय चिकित्सा विज्ञान भरा पड़ा है ।
Regards,